वाराणसी, जिसे शिव की नगरी के नाम से जाना जाता है, वहां से आदि शक्ति कैसे दूर हो सकती हैं? इसका प्रमाण काशी में स्थित एक दिव्य मंदिर में मिलता है, जहां मां शैलपुत्री साक्षात विराजमान हैं। यह मंदिर शारदीय नवरात्र के पहले दिन विशेष आस्था का केंद्र बन जाता है, जहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उनके जन्म के समय नारद जी ने भविष्यवाणी की थी कि यह पुत्री महान गुणों वाली और भगवान शिव की आराधना करने वाली होगी। जब माता शैलपुत्री बड़ी हुईं, तो उन्होंने भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को गहराई से महसूस किया और शिव की नगरी काशी की ओर प्रस्थान किया। यहां उन्होंने वरुणा नदी के किनारे एक शांत और पवित्र स्थान चुना, जहां वे तप में लीन हो गईं।
कुछ समय बाद, उनके पिता राजा शैलराज भी उस स्थान पर पहुंचे और अपनी पुत्री को तपस्या में लीन देखा। उन्होंने भी वहीं तप करना शुरू कर दिया। इसके बाद, उस पवित्र स्थान पर दोनों के मंदिर का निर्माण हुआ। इस मंदिर में राजा शैलराज शिवलिंग के रूप में नीचे विराजमान हैं, जबकि उसी गर्भगृह में ऊपर मां शैलपुत्री का आसन है।
नवरात्र के पहले दिन, माता शैलपुत्री मां पार्वती और मां दुर्गा के सभी नौ रूपों का दर्शन देती हैं। भक्त मानते हैं कि जो व्यक्ति इस दिन मां का दर्शन कर लेता है, उसे आदि शक्ति के सभी रूपों का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। मंदिर के पट मंगला आरती के बाद खोल दिए जाते हैं और तब से भक्तों का तांता लग जाता है।
यहां आने वाली सुहागिन स्त्रियां **सुहाग का सामान** भी माता को अर्पित करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिनके दांपत्य जीवन में कोई समस्या होती है, वे यहां दर्शन करके अपने जीवन की परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं।
मां शैलपुत्री के भक्तों का मानना है कि वह न केवल उनके कष्टों का निवारण करती हैं, बल्कि उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण करती हैं। माता का वाहन **वृषभ** है, और उनके दाएं हाथ में **त्रिशूल** तथा बाएं हाथ में **कमल** शोभायमान है।