Madrasa In India : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में 11 सितंबर को यह कहा है कि मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा संपूर्ण है नहीं है, साथ ही यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों के अनुसार भी नहीं है. बाल अधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यहां पढ़ाई जाने वाली किताबों में इस्लाम की सर्वोच्चता की बात पढ़ाई जाती है. आयोग ने यह तर्क भी दिया है कि बच्चों को उचित और अच्छी शिक्षा देने के लिए यह जगह सही नहीं है और एनसीईआरटी की कुछ किताबें पढ़ाना केवल दिखावा है और इनसे यह सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है कि बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन मिल रहा है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग बच्चों के अधिकारों के लिए गठित देश की सर्वोच्च संस्था है इसलिए सुप्रीम कोर्ट में आयोग द्वारा दी गई इस जानकारी के बाद मदरसों के एजुकेशन सिस्टम पर सवाल खड़े हो गए हैं?
क्या है मदरसा?
भारत में मदरसों का इतिहास काफी पुराना है, पहला मदरसा कब और कहां खोला गया, इसपर कई विचार हैं. कहा जाता है कि सबसे बड़ा और पहला मदरसा दारुल उलूम देवबंद उत्तरप्रदेश में खुला. यह भी एक तर्क है कि ब्रिटिश काल में दुभाषिया बनाने के लिए मदरसा खोला गया. मदरसा दरअसल इस्लामिक तरीके से पढ़ाई करवाने वाले स्कूल या शिक्षण संस्थान को कहा जाता है. भारत में मदरसे दो तरह के हैं-1. जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और 2. जो निजी खर्चों यानी चंदे से चलाए जाते हैं. शुरुआत में मदरसों में सिर्फ धार्मिक पढ़ाई ही होती थी और यहां से पढ़कर निकलने वाले बच्चे हाफिज, मुंशी, मौलवी और मुफ्ती बनते थे, लेकिन समय के साथ मदरसे की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव हुआ और अब सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ अन्य विषयों और भाषाओं मसलन हिंदी, अंग्रेजी, साइंस, सोशल साइंस और मैथ्स की पढ़ाई भी होती है. भारत में सबसे अधिक मदरसे उत्तर प्रदेश में हैं. 2020 में केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने संसद को बताया था कि 2018-19 तक, भारत में 24,010 मदरसे थे, जिनमें से 19,132 मान्यता प्राप्त मदरसे थे और शेष 4,878 गैर-मान्यता प्राप्त थे.